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Thursday, June 11, 2020

'जाने भी दो यारो' की तर्ज पर बन पड़ी 'गुलाबो सिताबो', मिर्जा के रोल में जमे अमिताभ तो बांके के किरदार में आयुष्मान भी छा गए

रेटिंग * 3.5/5
स्टार कास्ट अमिताभ बच्चन, आयुष्मान खुराना, विजय राज बृजेन्द्र काला
डायरेक्टर शूजित सरकार
प्रोड्यूसर रॉनी लाहिड़ी, शील कुमार
म्यूजिक शांतनु मोइत्रा, अभिषेक अरोड़ा और अनुज गर्ग
जॉनर कॉमेडी ड्रामा
अवधि 2 घंटे 4 मिनट

अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना स्टारर 'गुलाबो सिताबो' का वर्ल्ड डिजिटल प्रीमियर ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर हो गया है। यह फिल्म तकरीबन कुंदन शाह की ‘जाने भी दो यारो’, सई परांजपे की ‘कथा’ और ऋषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी की परंपरा वाली फिल्मों की तर्ज की बन पड़ी है, जहां तमाम जतन करने के बावजूद किरदारों को किस्मत की लात पड़ती रहती है।

कहानी लखनऊ के नवाबी ठाठ-बाठ वाले हिस्से पर सेट

निर्देशक शूजित सरकार ने इस बार सोशल सटायर में हाथ आजमाया है। लखनऊ के बैकड्रॉप में उन्होंने कुछ ऐसे किरदार दिखाए हैं, जिनकी परेशानियों पर हंसने और रोने के भाव साथ-साथ आते हैं। कहानी लखनऊ के उस हिस्से में सेट है, जहां कभी नवाबी ठाठ-बाठ हुआ करता था। वहां अब खंडहर बचे हैं, जिन पर सरकार, वहां रहने वाले किरायेदारों और सिस्टम की गिद्ध नजर टिकी हुई है।

एक ऐसा ही खंडहर फातिमा महल है, जिसकी मालकिन बेगम हैं। खुद से 17 साल छोटे शौहर मिर्जा (अमिताभ बच्चन) के साथ रहती हैं। बांके (आयुष्मान खुराना) उनका किरायेदार है, जो अपनी बहन गुड्डू और मां के साथ रहता है। 30 रुपए महीने का किराया देने में भी उसे दिक्कत है। इसके चलते मिर्जा और उसकी आपस में बिल्कुल नहीं बनती।

आगे चलकर हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि महल पर कब्जा करने के लिए पुरातत्व विभाग का अफसर शुक्ला आ धमकता है। मर्जा खुद भी बेगम की मौत के इंतजार में है, ताकि फातिमा महल उसके नाम हो जाए। उसकी मदद के लिए वकील भी साथ है।

...और अंत में बाजी कोई और मार ले जाता है

मौका देख बांके भी शुक्ला और लोकल प्रॉपर्टी डीलर के साथ मिलकर ताना-बाना रचता है। सभी किरदार आपस में टकराते हैं। सब एक-दूसरे से ज्यादा चालाक बनने की कोशिश करते हैं, लेकिन आखिर में सब की चतुराई धरी रह जाती है। बाजी कोई और मार ले जाता है।

अमिताभ, आयुष्मान और शूजित का शानदार काम

पूरी फिल्म मिर्जा और बांके की नोकझोंक के इर्द-गिर्द घूमती है। इसे अमिताभ और आयुष्मान ने बखूबी पेश किया है। मिर्जा और बांके की फटेहाल स्थिति को कॉस्टयूम डिजाइनर, प्रोस्थेटिक मेकअप आर्टिस्ट ने असरदार तरीके से जाहिर किया है। लेखिका जूही चतुर्वेदी की कहानी दमदार है तो वहीं शूजित सरकार का निर्देशन भी असरदार है। फिल्म के अंत में दर्शकों के लिए सरप्राइज एलिमेंट भी है।



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'गुलाबो सिताबो' अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की साथ में पहली फिल्म है।


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